राजा रवि वर्मा कौन थे?
राजा रवि वर्मा 18वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध चित्रकारों में से एक नाम है,,, जिनकी चित्रकारी और कला आज भी लोगों को काफी आकर्षित करती हैं। राजा रवि वर्मा ने अपनी कला के माध्यम से भारतीय संस्कृति को पुनः जीवंत कर दिया था। किसी को भी यह मालूम न था कि आखिर मूर्ति के अलावा भगवान दिखते कैसे होंगे लेकिन राजा रवि वर्मा ने भारतीय संस्कृति को हर तरह से पढ़ा उसे समझा और महाभारत, रामायण तथा उपनिषदों और पौराणिक कथाओं को विस्तार पूर्वक पढ़ने और समझने के बाद खुद में इस तरह उन्हें समाहित कर लिया कि उनके सामने वह पौराणिक पात्र मानो जीवन तो हो गए और उन्होंने उन सभी पात्रों को अपनी कला के माध्यम से चित्रकारी द्वारा अमर कर दिया। राजा रवि वर्मा का नाम आज के 21वीं सदी में भी बहुत ही आदर और सम्मान से लिया जाता है। यदि आप उनकी कला को ध्यान से देखेंगे तो आप समझ पाएंगे कि उनकी कला में भारतीय परंपरा और यूरोप की तकनीकी का बेहद ही उत्कृष्ट मिश्रण पाया जाता है जो की हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है।
राजा रवि वर्मा ने अपने चित्रकारी के माध्यम से न केवल राजाओं के लिए काम किया और उनके दरबार की शोभा बढ़ाई बल्कि भगवान की पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसी ऐसी चित्रकारी बनाई जिसके बारे में सामान्य इंसान को सोचना भी मुश्किल था और इसी कला के माध्यम से उन्होंने पौराणिक कथाओं द्वारा भगवान की जीवंत पेंटिंग व चित्रकारी को प्रिंटिंग का सहारा लेते हुए घर-घर पहुंचाया और हर घर को मंदिर बनाया। क्योंकि प्राचीन समय में बहुत सी ऐसी प्रथाएं थी कि कुछ जाति के लोग मंदिरों में प्रवेश नहीं कर सकते थे जिसकी वजह से उन्हें मालूम ही ना था कि आखिर भगवान दीखते कैसे हैं? लेकिन राजा रवि वर्मा ने अपनी चित्रकारी द्वारा लोगों के समक्ष अपनी चित्रकारी द्वारा भगवान की मानो बोलती हुई तस्वीर को प्रदर्शित किया जिसके बाद राजा रवि वर्मा का सम्मान और भी बढ़ गया। दोस्तों हम अपने इस लेख में राजा रवि वर्मा के संपूर्ण जीवन की बात करने वाले हैं। तो यदि आप उनके बारे में सविस्तार जानना चाहते हैं तो हमारे इस लेख को जरुर पढियेगा।
राजा रवि वर्मा का जीवन परिचय
राजा रवि वर्मा का जन्म केरल के तिरुवंतपुरम के किलिमानूस पैलेस में सन 1848 के 29 अप्रैल को एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। यह दो भाई थें। राजा रवि वर्मा बेहद ही छोटे आयु से ही चित्रकार का अभ्यास करते थे लेकिन एक बार जब उनकी आयु महज 5 वर्ष की रही होगी तब उन्होंने अपने घर की दीवारों पर दैनिक जीवन की तमाम घटनाओं को चित्रित करना शुरू कर दिया था जिसके बाद उनके चाचा जो की कलाकार व चित्रकार थे जिनका नाम था राज राजा वर्मन उन्होंने राजा रवि वर्मा की इस कला को पहचान लिया इसके बाद उन्होंने राजा रवि वर्मा को चित्रकारी की शिक्षा देना शुरू कर दिया था।इसके बाद जब भी 14 वर्ष की आयु के हुए तब उनके चाचा जी ने उन्हें तिरुवनंतपुरम के राजमहल में तैल चित्रण की शिक्षा देने के लिए लेकर गए और इसके बाद वह अपनी चित्रकारी में अलग-अलग आयाम से दक्षता प्राप्त करने के लिए मैसूर बड़ौदा तथा देश के बहुत सारे अलग-अलग भागों में गए और अपनी चित्रकार को सुव्यवस्थित ढंग से सीखा। राजा रवि वर्मा की इस कला का सबसे अधिक श्रेय उनके चाचा राज राजा बर्मन को दिया जाता है। यदि बात करें कि राजा रवि वर्मा को किस चित्रकार में भारत प्राप्त थी तो आपको बता दें कि पारंपरिक तंजौर कला में महारत प्राप्त करते हुए राजा रवि वर्मा यूरोपीय कल का अध्ययन भी कर रहे थे। आर्व इन दोनों में ही माहिर थें।
राजा रवि वर्मा का बचपन का नाम केवल रवी वर्मन था लेकिन उनकी चित्रकारी और उनकी कला का बेहतरीन प्रदर्शन देखते हुए उन्हें केरल के राजा ने राजा की उपाधि दे दी जिसके बाद उनका नाम राजा रवी वर्मन हो गया।
राजा रवि वरमानी अपनी द्वारा बनाए गए सभी चित्रकारियों को जो कि भगवान के थे उन्हें घर-घर पहुंचने के लिए प्रिंटिंग प्रेस का सहारा लिया और हर घर में अपने चरित्र को पहुंचा जिससे कि लोग भगवान की पूजा कर सके और वह समझ पाए और देख पाए कि आखिर भगवान दीखते कैसे हैं? राजा रवि वर्मा को यह कार्य करने के लिए बहुत ही जोखिम भी उठाना पड़ा था जो कि उन्होंने उठाया था। अंत समय में राजा रवि वर्मा के पास बहुत ही काम चीज बची थी और उनके साथ उनके भाई ने अंतिम समय तक दिया था। राजा रवि वरमानी अपनी चित्रकारी में महारत हासिल करते हुए 58 वर्ष की उम्र में हे सान 1906 में परलोक सीधार गए।
राजा रवि वर्मा की शकुंतला कौन थी? (Raja Ravi Varma and Shakuntala)
राजा रवि वर्मा की प्रसिद्ध चित्रकारियों में से एक पेंटिंग है शकुंतला। यह पेंटिंग चर्चा में इसलिए अभी आई थी क्योंकि यह पेंटिंग दुष्यंत और शकुंतला के जीवन पर बनाई गई थी। और यह कहानी बहुत ही मशहूर भी है जिसमें शकुंतला एक अप्सरा थी जिसे की राजा दुष्यंत से प्रेम हो जाता है लेकिन शकुंतला को यह श्राप था कि जिस दिन धरातल पर कोई भी ऐसा इंसान जो कि उन्हें उनके ही रूप में देख लेगा या नग्न रूप में देख लेगा तो उन्हें पुनः स्वर्ग लोक में हमेशा के लिए आना होगा। और एक दिन ऐसा ही होता है जब दुष्यंत और शकुंतला एक साथ होते हैं तब एकाएक बिजली चमकती है और तब दुष्यंत शकुंतला को देख लेते हैं जिसके बाद शकुंतला को हमेशा के लिए देवलोक जाना होता है। और इसी दृश्य को राजा रवि वर्मा ने अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से दर्शाया है।
राजा रवि वर्मा की प्रेमिका कौन थी?
राजा रवि वर्मा की प्रेमिका सुगंधा थी जो कि पैसे से एक वेश्या मानी जाती थी लेकिन राजा रवि वरमानी जब पहली बार उन्हें मंदिर में देखा तो वह उनके लिए उनकी चित्रकारी की प्रेरणा बन गई थी। इसके बाद राजा रवि वर्मा ने अपने हर देवियों के चित्र में सुगंध को बिठाकर उन्हें प्रेरणा मानते हुए देवियों का चित्र बनाया है। ऐसी बहुत सारी और पेंटिंग्स भी है जो की सुगंध की राजा रवि वर्मा ने बनाई थी लेकिन समाज ने उन पेंटिंग्स को और स्वीकार करते हुए राजा रवि वर्मा पर केस भी कर दिया था। और उन्हें में से एक पेंटिंग मानी जाती है शकुंतला।
राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स कहां रखी गई हैं?
राजा रवि वर्मा द्वारा बनाई गई अधिकतम पेंटिंग्स व हिंदू देवी देवताओं की चित्रकार को गुजरात के वडोदरा में लक्ष्मी विलास महल के संग्रहालय में संग्रहित करके रखा गया है। जो की चित्रों का बहुत ही बड़ा संग्रहालय है। यदि आप राजा रवि वर्मा द्वारा बनाए गए चित्रकार को अपनी आंखों से देखना चाहते हैं तो आप गुजरात के वडोदरा में जाकर लक्ष्मी विलास महल में उनकी सभी चित्रकारियां देख सकते हैं।
राजा रवि वर्मा के रोचक तथ्य
दोस्तों हम आपको बता दें कि राजा रवि वर्मा द्वारा बनाई गई चित्रकारी की नकल करने वाली सभी साड़ियां विश्व भर में सबसे अधिक महंगी सर्दियों में से एक होती है जिन्हें की बहुत ही कीमती 12 रतन और धातुओं से मिलकर बनाया जाता है। इन साड़ियों की शुरुआती कीमत 40 लख रुपए तक की आकी गई है जो की वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाती हैं ।
राजा रवि वर्मा की प्रसिद्ध पेटिंग (Raja Ravi Verma paintings)












यह सभी पेंटिंग्स राजा रवि वर्मा द्वारा बनाई गई है।
तो दोस्तों हमें आशा है कि आपको हमारे इस लेख में सभी जानकारियां प्राप्त हो गई है ऐसी ही और लेख को पढ़ने के लिए आप हमारे दूसरे लेख को पढ़ सकते हैं।