गोपालदास नीरज का जीवन परिचय
“स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लूट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से, और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे, कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!” गोपालदास नीरज…
“स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से, लूट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से, और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे, कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!” गोपालदास नीरज…
पिता बढ़ती उम्र और जिम्मेदारियों मे वो अपने सपनों का वज़ूद खोते हैं। औरो की तरह वे अपने इन समस्याओं पर, भला वो कब रोते हैं? देख के अपनी औलादों…
एक अच्छी कविता कैसे लिखें? (How to Write a Poem in Hindi?) दोस्तों यदि आप भी कविताएं लिखते हैं तो आपके मन में यह प्रश्न जरूर आता होगा कि एक…