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महादेवी वर्मा व उनकी रचनाएँ

महादेवी वर्मा उनकी रचनाएँ

हिंदी साहित्य में छायावाद युग के चार स्तंभों में से एक प्रमुख स्तंभ के रूप में जानी जाने वाली सुप्रसिद्ध लेखिका महादेवी वर्मा जी के बारे में भला कौन नहीं जानना चाहेगा? हमारे इस पोस्ट में आप महादेवी वर्मा के जीवन की वह तमाम बातें जानेंगे जिससे आप अब तक अनभिज्ञ रहे हैं। महादेवी वर्मा का जन्म से लेकर उनके विवाह तक की यात्रा बहुत ही कठिन थी, और उनका साहित्य में किस प्रकार से लगाव हो गया इन तमाम बातों पर हम अपने इस पोस्ट में चर्चा करेंगे। साहित्य में उनके योगदान व उनकी रचनाएं हम आपको बताने वाले हैं जिसे जानने के लिए आप हमारे इस पोस्ट से शुरू से अंत तक बने रहिए।

महादेवी वर्मा कौन थीं?

महादेवी वर्मा एक सुप्रसिद्ध लेखिका थीं जिन्होंने अपने कलम की धार के बल पर छायावादी युग के चार स्तंभों में से स्वयं एक स्तंभ होने का गौरव प्राप्त किया था। उनकी लेखनी हर विधा में लिखी जाती थी लेकिन मार्मिक भाव को लेकर जब भी उन्हें पढ़ा जाए या फिर किसी स्त्री की वेदना को पढ़ना हो तो महादेवी वर्मा को जब भी पढ़ा जाए वह सीधे दिल में घाव कर जाते थे। कविता कि महज चार लाइनों में भी एक स्त्री का पूरा जीवन व्यक्त करने की कला मात्र महादेवी वर्मा के लेखनी में हमें मिलती है जैसे में-

 मैं नीर भरी दुख की बदरी,

 विस्तृत नभ का कोई कोना,

 मेरा कभी अपना होना,

 परिचय इतना इतिहास यही,

 उमड़ी कल थी मीट आज चली।।

महादेवी वर्मा की रचनाएं ही उनकी पहचान है। वें हिंदी साहित्य में एक विशेष भूमिका निभाते हुए हमें दिखाई देती हैं। जिनकी कविताएं  युवाओं को मार्गदर्शन देने का कार्य करती है। महादेवी वर्मा जी ने ना केवल पद्द में ही अपनी भूमिका निभाई है बल्कि गद्य में भी उन्होंने महारथ हासिल की है। उनके द्वारा लिखी गई कहानी और काव्य आज भी लोगों के बीच में चर्चा का विषय है। आधुनिक हिंदी कवित्रियों में से भी एक थी इसी कारण से उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी लोग उन्हें जानते थे। सुमित्रानंदन पंत और कवि निराला जी से उनका भाई-बहन के जैसा रिश्ता था इसी कारण से निराला जी लगभग 40 सालों तक महादेवी वर्मा जी से राखी बंधवाते रह गए निराला जी से महादेव वर्मा का इतना अधिक स्नेह था कि निराला जी ने उन्हें हिंदी साहित्य की सरस्वती भी कहा है।

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में के बाबा बाबू बांके बिहारी जी के घर में सन् 1907 में 26 मार्च को एक पुत्री का जन्म हुआ था। इस पुत्री के जन्म लेने से बांके बिहारी जी बहुत खुश थे क्योंकि उनके पूरे खानदान में लगभग सात पीढ़ियों बाद किसी बेटी ने जन्म लिया था इसीलिए वह अपने परिवार की बहुत लाडली थी और उन्हें प्यार से लोग घर की देवी का कर बुलाते थे अरे यही देवी धीरे-धीरे महादेवी बन गई जिनका नाम महादेवी वर्मा रखा गया। बाबू बांके बिहारी महादेवी वर्मा के दादा जी थे और उनके पिता का नाम श्री गोविंद प्रसाद था और माता हेमरानी देवी। महादेवी वर्मा के पिताजी भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे जिन्हें संगीत से प्रेम था वे नास्तिक थे और शिकार करने घूमने के शौकीन थे तथा मांसाहार भी थे लेकिन इसके ठीक विपरीत उनकी माताजी एक ग्रहणी होने के साथ ही साथ धर्म परायण और कर्मनिष्ठ भावुक महिला थीं जिन्हें भगवान पर पूर्ण भरोसा था।

 महादेवी वर्मा नें अपने जीवन की शुरुआत अध्यापन से की और अंतिम समय तक वे अध्यापन कार्य में ही लगी रहीं। महादेवी वर्मा अंतिम समय में प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य रही थीं। महात्मा गांधी के चरित्र से महादेवी वर्मा बहुत प्रभावित थी इसके पश्चात हुए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की हिस्सा भी बनी थीं। महादेवी वर्मा ने अपने जीवन के अंतिम समय अधिकतम इलाहाबाद के शहर में ही बताया था जहाँ उन्होंने सन 1987 में 11 सितंबर को रात 9:30 पर अपनी अंतिम सांसे ली थी।

महादेवी वर्मा का वैवाहिक जीवन

महादेवी वर्मा के बाबा बाबू बांके बिहारी नें महादेवी वर्मा की शादी काफी कम उम्र में कर दी थी जिसे बाल विवाह भी कहा जा सकता है। महादेवी वर्मा की जब शादी हुई थी तब वह महज आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी। महादेवी वर्मा की शादी डॉक्टर स्वरूप नरेन वर्मा के साथ सन 1914 में हुई थी। विवाह के बाद भी मैं अपने माता-पिता के साथ ही रहती थी क्योंकि उनके पति लखनऊ के किसी कॉलेज में उसे समय पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन महादेवी वर्मा का शादी जैसी सांसारिक बंधन में किसी भी प्रकार का लगाव नहीं था इसीलिए वे ब्याहता होते हुए भी एक कुंवारी लड़की की तरह अपना जीवन जीती थीं। इस बात से उनके पति को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं थी उनके पति ने महादेवी वर्मा के इस बात का सम्मान रखा और वह उनकी पढ़ाई में उनकी मदद भी किया करते थे। वे दोनों भले ही नाम के लिए पति-पत्नी थे लेकिन वास्तविक जीवन में एक अच्छे दोस्त भी थे। महादेवी वर्मा के बहुत खाने के बाद भी उनके पति ने दूसरे शादी नहीं की और अकेले ही अपना जीवन जीते रहे।

महादेवी वर्मा की रचनाएँ

महादेवी वर्मा गद्य विधा और पद्दविधा दोनों में ही लिखती थीं। महादेवी वर्मा खड़ी बोली हिंदी में अपनी कविताएं लिखती थीं।महादेवी वर्मा ने सन् 1923 में चांद नामक महिलाओं की प्रमुख कविता पत्रिका का कार्यभार संभाला था। इसके बाद उन्होंने लगातार लिखना शुरू किया और फिर निहार, रश्मि, नीरजा व सांध्यगीत नामक चार कविता संग्रह किताबें लिखी जों कि प्रकाशित हुयीं। इन सबके अलावा भी महादेवी वर्मा के 18 काव्य और गद्य कृतियां प्रकाशित हुई थी जिनमें की

 पथ के साथी

 स्मृति की रेखाएं

 मेरा परिवार

 अतीत के चलचित्र

 और

श्रृंखला की कड़ियां

नामक गद्य कृतियां प्रकाशित हुई थी जो की प्रमुख हैं।महादेवी वर्मा ने भारत देश के आजादी के पहले का भारत और आजादी के बाद का भारत दोनों ही परिस्थितियों को बहुत बारीकी से देखा था जिसकी वजह से उन्हें इन सबके बीच में स्त्रियों की दशा का पूरा-पूरा भान था। उनके लेखनी में दीपशिखा नामक चरित्र स्त्रियों के साहस को दर्शाता है। महादेवी वर्मा के संपूर्ण गद्य साहित्य में स्त्रियों के प्रति कहीं भी पीड़ा या वेदना नहीं दिखाई देती है।

महिला कवि सम्मेलन सबसे पहले किसने शुरू किया था?

महादेवी वर्मा ने हीं सर्वप्रथम महिला कवि सम्मेलनों की आधारशिला रखी थी। इसके बाद उन्होंने पहले अखिल भारतवर्षीय कवि सम्मेलन सन् 1933 में 15 अप्रैल को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ महाविद्यालय में करवाया था।महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान बहुत ही करीबी सहेलियां थीं क्योंकि वें साथ ही साथ एक ही महाविद्यालय में पढ़ती थीं। जहाँ वे दोनों लोग एक दूसरे से बहुत कुछ सीख पाती थीं।

महादेवी वर्मा को दिए गए सम्मान व उपलब्धियाँ

महादेवी वर्मा द्वारा स्त्रियों की दशा को सुधारने व महिलाओं की शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए आवाज उठाई थी,, उनके इसी साहस और दृढ़ता को देखते हुए उन्हें आधुनिक मीरा  के साथ हीं साथ महिला मुक्तिवादी भी कहा जाता है।

तो दोस्तों हमें आशा है कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा ऐसी और जानकारी को पढ़ने के लिए आप हमारे दूसरे लेखों को पढ़ सकते हैं।

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