पिता
बढ़ती उम्र और जिम्मेदारियों मे
वो अपने सपनों का वज़ूद खोते हैं।
औरो की तरह वे अपने इन समस्याओं पर,
भला वो कब रोते हैं?
देख के अपनी औलादों को ,
मन को वो अपने ख़ुश कर जाते हैं।
एक विशाल पेड़ की छाया की तरह,
दुःख के धुप से हमें छिपाते हैं।
हमारे देखे सपनो को ,
आमदनी की तंगी में भी,
पूरा करवाने की हिम्मत वो दिखाते हैं।
अपने हिस्से की रोटी कम कर,
रात-दिन मेहनत कर-कर के,
वो भविष्य हमारा बनाते हैं।
मेरे दर्द को उनके आँखों से
बहते आँसू में देखा है।
मेरे दामन के हर काँटों को,
उन्होंने नोंच-नोंच के फेंका है।
सबसे अजीब बात है कि,
इस दुनिया ने मुझे गिराने में,
अपनी पूरी भूमिका निभायी है।
पर मेरे पिता के काँधे की ठेघ ने,
कभी भी मुझे हार न दिलाई है।
माँ धरती है तो पिता आसमान हैं,
भगवान को तो नही देखा है पर,
मेरे पिता मेरा सारा जहान हैं।
श्वेता पाण्डेय।
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