राजा राम मोहन रॉय का जीवन परिचय ( Raja Ram Mohan Roy biography in Hindi )-
राजा राममोहन रॉय एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने समाज से बहुत सारी कुप्रथाओं को खत्म करके महिलाओं की जिंदगी को एक नया मोड़ देने का कार्यक्रम किया है, जिसकी वजह से विधवा महिलाओं को सती होने से बचाया जा सका और उन्हें जीने का एक नया मौका मिला। वैसे तो राजा राममोहन रॉय ने हमारे समाज के लिए बहुत सारे कार्य किए हैं जिनके बारे में हम आपको अपने इस लेख में बताने वाले हैं। तो दोस्तों राजा राममोहन रॉय के बारे में वह तमाम जानकारियां प्राप्त करने के लिए आप हमारे इस लेख से अंत तक बन रहें।
राजा राम मोहन रॉय कौन थे?
राजा राम मोहन रॉय भारत देश के एक ऐसे समाज सुधारक थे जिन्हें की भारत के पुनर्जागरण का पिता और आधुनिक भारत का जनक भी कहा जाता है। राजा राममोहन रॉय एक महान समाज सुधारक, पत्रकार, लेखक, राजदूत और स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने अपनी सकुशल पत्रकारिता की बदौलत समाज में बहुत से क्षेत्र में काम किया और समाज के लोगों को उनकी कुप्रथाओं को आईना दिखाने का काम किया। राजा राममोहन रॉय नें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई आंदोलन में हिस्सा लेकर उन्हें सही दिशा दिखाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई है।
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राजा राम मोहन रॉय का जन्म और उनका परिवार ?( Raja Ram Mohan Roy B’day and his family)
राजा राम मोहन रॉय का जन्म भारत देश के बंगाल प्रांत के हुगली जिले के राधानगर में 22 मई सन 1772 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रमाकांत था तथा माता का नाम तारिणी देवी था। राजा राम मोहन रॉय के दादाजी कृष्णकांत बंदोपाध्याय एक कुलीन रारही ब्राह्मण थे। राजा राममोहन रॉय दिमाग के इतने अधिक तेज थे कि उन्होंने मात्र 15 वर्ष की आयु में ही बंगाली, संस्कृति, अंग्रेजी और फारसी विषयों पर अच्छा खासा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। और साथ ही साथ में अरबी, लैटिन और ग्रीक भाषा के भी बहुत अच्छे जानकार थे। राजा राम मोहन रॉय उपनिषदों और वेदों के बहुत अच्छे ज्ञाता थे। और वे उपनिषद और वेदों से इतनी अधिक प्रभावित थे कि चाहते थे कि उपनिषद के सिद्धांतों को शिक्षा में भी शामिल किया जाए और जिससे की जितनी भी धार्मिक कुरीतियां है जिनका प्रभाव हमारे धर्म पर पढ़ रहा है उनको समाप्त किया जा सकें ।
राजा राममोहन राय की मृत्यु सन 1833 में 27 सितंबर को हुई थी। राजा राममोहन राय की समाधि इंग्लैंड के ब्रिस्टल में बनाई गई है।
राजा राम मोहन रॉय ने समाज के लिए क्या किया था?
राजा राममोहन रॉय दहेज प्रथा और सती प्रथा के घोर विरोधी थे क्योंकि यह दोनों ही दुख उनके ही अपने घर से होकर गुजरा था। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में अपनी बहन की शादी के लिए दहेज प्रथा से पीड़ित होते और फिर अपनी बहन को सती होते देखा था।
राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज के लिए बहुत विशिष्ट कार्य किए हैं।उन्होंने सामाजिक, धार्मिक और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका निभाई है। राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज में आधुनिक शिक्षा को शामिल करने पर विशेष जोर दिया था। और वे अपनी पत्रकारिता के माध्यम से समाज में उपस्थित तमाम हो रही घटनाओं को निर्भीक होकर लिखते थे।
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राजा राम मोहन रॉय को राजा की उपाधि किसने दी थी?
राजा राममोहन रॉय ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर राष्ट्र के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था। वह भारत के राजदूत के तौर पर भी कार्यरत रहे थे। इसके माध्यम से वे विदेश की ऐसी नीतियां भी हमारे भारत देश में लेकर आते थे जिससे कि देश का विकास हो सके। उन्होंने किशोरावस्था में ही विदेशी भी भ्रमण किया था। और फिर मुगल सम्राट अकबर द्वितीय की ओर से वे उनके राजदूत बनकर UK की यात्राओं पर भी गए थे।उनके इन्हीं सभी कार्यों को देखते हुए मुगल शासक अकबर द्वितीय ने राम मोहन रॉय को राजा की उपाधि दी जिसके बाद उनका नाम राजा राममोहन रॉय हो गया। और फिर भविष्य में राजा राममोहन राय के को सम्मान देने के लिए उनके नाम का टिकट भी जारी किया गया था।

राजा राम मोहन रॉय द्वारा आत्मीय सभा की स्थापना क्यों की गई?
राजा राम मोहन रॉय द्वारा सन 1814 में आत्मीय सभा की स्थापना की गई थी,, जिसके माध्यम से कोलकाता में उपस्थित हुए तमाम बुद्धिजीवी स्तर के लोग एक साथ बैठते थे और मूर्ति पूजा,जातिवाद जैसे तमाम धार्मिक व सामाजिक समस्याओं पर खुलकर चर्चा करते थे। और साथ ही साथ ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में किस तरह से अपना काम कर रही है और भारत का पैसा लूट कर इंग्लैंड लेकर जाती है और कितने पैसे लेकर जाती है? इन सभी गतिविधियों पर नजर बनाने वाले राजा राममोहन राय पहले व्यक्ति थे।
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राजा राम मोहन रॉय के कार्य क्षेत्र
राजा राम मोहन रॉय ने अपने जीवन काल में बहुत सारे कार्य किए हैं जिसमें से की सबसे पहले उन्होंने सती प्रथा पर रोक लगाने का कार्य किया है। और साथ ही साथ उन्होंने आत्मीय सभा की स्थापना करके बहुत सारे आडंबरों पर रोक लगाने का भरपूर प्रयास किया है। राजा राम मोहन रॉय ने सन 1809 से लेकर 1814 तक इंडिया कंपनी के लिए काम किया इसके बाद उन्होंने वह काम छोड़ कर उन्होंने स्वयं को राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित कर दिया। इसके बाद राजा राममोहन राय ने पत्रकारिता के क्षेत्र में ब्रह्म मैनिकल मैगजीन में संपादन की कार्य किया और फिर सन 1821 में संवाद कौमुदी, फिर सन 1822 में मीरात उल अखबार, और सबसे विशेष बंगदूत जैसे नामी गामी अनोखे पत्रों में भी प्रकाशन कार्य व संपादन कार्य किया है जिसे बांग्ला हिंदी और फारसी जैसी भाषाओं में प्रकाशित किया जाता था। राजा राम मोहन रॉय पत्रकारिता के क्षेत्र में इतनी अधिक ईमानदार थे कि वह किसी भी खबर को छापने के लिए बिल्कुल भी हिचकी चाहते नहीं थे और बेहद ही इमानदारी से अपना कार्य करते थे।और फिर बाद में इन्होंने “सन 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य था कि शाश्वत भगवान की पूजा करना और दिखावे के कर्मकांड और बलिदानों का घोर विरोध करना। इस सभा के माध्यम से राजा राममोहन राय ने लोगों को प्रार्थना ध्यान और शास्त्रों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। और साथ ही साथ उन्होंने पाखंडों को बेनकाब करने का बेड़ा भी उठाया।“
राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज की शिक्षा में आधुनिकता पर जोर दिया जिसमें अंग्रेजी, आधुनिक शिक्षा, विज्ञान जैसे विषयों पर अधिक जोर दिया गया था
ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की थी?
ब्रह्म समाज की स्थापना सन 1828 में राजा राममोहन राय द्वारा की गई थी। किसके द्वारा उन्होंने समाज में उपस्थित तमाम प्रकार की बुराइयों पर खुलकर आवाज उठाई थी और पूजा पाठ में होने वाले बलिदान वह पाखंडों पर खुलकर विरोध किया था।
राजा राममोहन रॉय द्वारा सती प्रथा को कैसे खत्म किया गया?
राजा राम मोहन रॉय भारतीय समाज के एक ऐसे समाज सुधारक थे जिनके घर से ही सती प्रथा की एक घटना होकर गई थी। जब भी उम्र में छोटे थे तभी उनकी बहन जिनकी उम्र लगभग 17 साल थी उनके पति की मृत्यु हो गई जिसके बाद उनकी बहन को ना चाहते हुए भी जबरदस्ती चिता पर जीते जी फेंक दिया गया था। इसके बाद उनकी चीख से समाज पर कोई बुरा असर न पड़े इसीलिए उसके चिता के सामने ढोल बाजे और नगाड़े बजवाए गए जिससे कि उनकी चीख को दबाया जा सके। और जलती हुई चिता से सती होने वाली स्त्री कहीं भाग न जाए इसीलिए चिता के चारों ओर आदमी खड़े किए जाते हैं जिनके हाथों में बांस के डंडे होते थे जो कि उसे जबरदस्ती चिता पर बिठाये रखने के लिए काम करते हैं।
और यह सारे काम राजा राममोहन राय ने अपनी आंखों से होते हुए देखा था,, जिसका असर उनके बाल जीवन से ही उन पर पड़ गया था। इसके बाद उन्होंने सती प्रथा को जड़ से खत्म करने का प्रण किया था। इसके बाद बड़े होने पर उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई और लॉर्ड विलियम बैंटिक की सहायता लेते हुए उन्होंने सती प्रथा उन्मूलन कानून बनवाया जिसके बाद किसी भी स्त्री को सती होने के लिए कोई भी मजबूर नहीं कर सकता था। जो कि भारतीय समाज में उपस्थित तमाम विधवा महिलाओं के लिए एक नए सूर्योदय की तरह था।
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राजा राम मोहन रॉय पुस्तकालय संगठन ( Raja Ram Mohan Roy library Foundation)
राजा राममोहन राय के सराहनीय कार्यों को याद रखने के लिए उनके 200 में जन्मदिन पर भारत सरकार द्वारा मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संस्कृत विभाग के अधीन सन 1972 में राजा राम मोहन रॉय पुस्तकालय संगठन नामक संस्था की स्थापना की गई। जिसके माध्यम से समाज में शिक्षा को और अधिक बढ़ावा दिया जा सके। क्योंकि राजा राममोहन राय ने आजीवन तमाम प्रकार की हो प्रथाओं को खत्म करने के साथ ही साथ शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा व समाज के हर वर्ग को शिक्षित करने में अपना जीवन बिताया था। और इसीलिए इस संस्था की स्थापना 22 में सन 1972 को की गई। 22 मई को हर साल राजा राम मोहन जयंती मनाई जाती है।
तो दोस्तों हमें आशा है कि राजा राममोहन राय से संबंधित वे सभी जानकारियां आपको हमारे इस लेख में मिली है जिसे आप जानना चाहते थे। ऐसी ही और जानकारी को पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट से बनें रहिए।
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